Ghutan (NOVEL)
उफ़! कितना सन्नाटा था, चारों तरफ सन ,सन ,सन, सन । दूर-दूर तक लोग नजर आ रह रहें थे,लेकिन जैस जैसे सब शांत खड़े हो,लोग बोल भी रहे थे, बात भी कर रहे थे ,लेकिन उनकी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। मानो वह खामोश खड़े हो ,चारों तरफ नजर दौड़ाई तो कुछ बड़े और कुछ छोटे-छोटे पेड़ भी थे। हवा चल रही थी, पेड़ों के हिलने से यह आभास हो रहा था। किंतु हवा का ना तो कोई शोर था और ना ही हवा का कोई एहसास। सहसा आकाश की ओर निगाह डाली जैसे चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा हो ,चांद चमक रहा था चारों तरफ तारे भी झिलमिल कर रहे थे,लेकिन एक अचानक, एक अजीब सी शांति थी, सन्नाटा था पूरे वातावरण में। लेकिन शोर था, हलचल भी थी, तूफान मचा था, लेखिका के मन में, लेखिका के हृदय में। उसे शोर ,तूफान और हलचल के कारण चारों ओर के वातावरण का शोर मानो सुनाई ना दे रहा हो । अरे !यह क्या हो गया? सन्नाटा कहां खत्म हो गया? शांति कहां चली गई? अचानक सब लोग क्यों भागने लगे? क्यों दौड़ने लगे? यह जानने के लिए लेखिका के कदम भी उन दौड़ते हुए लोगों की तरफ अचानक बढ़ गए ,बढ़ते गए और वहां जाकर थम गए जहां से यह कहकर, समझा ...