Ghutan (NOVEL)
उफ़! कितना सन्नाटा था, चारों तरफ सन ,सन ,सन, सन । दूर-दूर तक लोग नजर आ रह रहें थे,लेकिन जैस जैसे सब
शांत खड़े हो,लोग बोल भी रहे थे, बात भी कर रहे थे ,लेकिन उनकी आवाज सुनाई नहीं दे रही थी। मानो वह खामोश खड़े हो ,चारों तरफ नजर दौड़ाई तो कुछ बड़े और कुछ छोटे-छोटे पेड़ भी थे। हवा चल रही थी, पेड़ों के हिलने से यह आभास हो रहा था। किंतु हवा का ना तो कोई शोर था और ना ही हवा का कोई एहसास। सहसा आकाश की ओर निगाह डाली जैसे चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा हो ,चांद चमक रहा था चारों तरफ तारे भी झिलमिल कर रहे थे,लेकिन एक अचानक, एक अजीब सी शांति थी, सन्नाटा था पूरे वातावरण में। लेकिन शोर था, हलचल भी थी, तूफान मचा था, लेखिका के मन में, लेखिका के हृदय में। उसे शोर ,तूफान और हलचल के कारण चारों ओर के वातावरण का शोर मानो सुनाई ना दे रहा हो । अरे !यह क्या हो गया? सन्नाटा कहां खत्म हो गया? शांति कहां चली गई? अचानक सब लोग क्यों भागने लगे? क्यों दौड़ने लगे? यह जानने के लिए लेखिका के कदम भी उन दौड़ते हुए लोगों की तरफ अचानक बढ़ गए ,बढ़ते गए और वहां जाकर थम गए जहां से यह कहकर, समझा कर बाहर भेजा गया था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। परेशान ना हो, बाहर चली जाओ। लेकिन जो वहां का माहौल था, उसे देखकर तो नहीं लगता था कि सब कुछ ठीक हो जाएगा। चारों तरफ डॉक्टर हलचल मचा रहे थे। आपस में कुछ कह रहे हैं थे । समझने की बहुत कोशिश की, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कह रहे है। बस यही दिखाई दे रहा था कि जोर जोर से सीने पर हाथ रखकर, सीने को दबाकर साँस दिलाने की कोशिश कर रहे हैं। फिर काफी देर यही प्रक्रिया करने के बाद एक शब्द कहा," आई एम सॉरी ।"सुनते ही पांव जमीन पर जैसी जम गई हो ।दिमाग ने काम करना बंद कर दिया हो और मानो हृदय की धड़कन धीमी पड़ गई हो। यह तो ना सोचा था । यह क्या हो गया ?अपने कानों पर अपनी आंखों पर किसी की बातों पर कुछ भी विश्वास नहीं हो रहा था। लेकिन कुछ ना समझ में आने के बाद भी , मुंह से ऐसा ही एक चीख निकल पड़ी। "मेरे पापा आप मुझे छोड़कर नहीं जा सकते ,नहीं जा सकते।"
फिर क्या था लेखिका के हृदय का सारा शोर सारी हलचल ashru बनकर आंखों से बाहर आने लगा ऐसी दर्द ऐसी पीड़ा जिसे शब्दों में पाया नहीं करता किया जा सकता लोगों के लाभ समझा नहीं दिलासा देने के बाद भी लगता था यह दर्द कम नहीं हो पाएगा ऐसी तड़प और पीड़ा की लगता था की आत्मा ही शरीर को छोड़कर चली जाएगी
संस्था लिखी कई निकाह अपनी माता के चेहरे पर पड़ी चेहरा पूरा सफेद पड़ चुका था उनकी स्थिति उनकी मानसिक स्थिति सामान्य नहीं थी सब कुछ देखना के बाद भी वह यह नहीं समझ पा रही थी कि पापा अब नहीं रहे यही कह रही थी कि क्या तुम्हारे पापा को कहीं लेकर जा रहे हैं उनकी मानसिक स्थिति का साथ चाहिए असामान्य होना स्वाभाविक ही था पिछले 40 दिन से दिन और रात पापा की सेवा कर रही थी इस आशा के साथ कि वह जल्दी ही ठीक होकर घर आ जाएंगे और फिर वह हम सबको छोड़ कर चले जाएंगे यह तो म कभी सोच ही नहीं सकते थे क्योंकि ना तो कोई ऐसी बीमारी थी और ना ही कोई आयु मात्र 44 वर्ष की आयु में ही वह एक मामूली बीमारी के कारण इस दुनिया से चले गए अचानक चले गए हम सबको हंसता हुआ छोड़ कर चले गए इस सच्चाई को कबूल करना मेरे लिए ही नहीं बल्कि मेरी मां और मेरे परिवार के लिए बिल्कुल ही नामुमकिन था
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